Awara Masiha
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कल शाम को
चली गई
गोरैया को,
नई सुबह
वापस लौटकर
आते हुए,
देखता हूँ
जब कभी भी,
सोचता हूँ कि,
दु :ख-सुख इस
चिढ़या की तरह,
सूरज के निकलने
और ढलने
के साथ
आते जाते
रहते हैं,
बस हमें
घर के आँगन
की तरह
मन खुला रखना
पढ़ता है,
नहीं तो फीकी
बेरंग सी जिंदगी के
साथ अपने कंधो
पर पहाढ़ जैसा
बोझ उठाये
बस चलते
रहना पढ़ता है
बिना सुख-दु:ख के,
निरंतर निराधार
एक कभी न खत्म
होने वाले पथ पर
अकेले,
निरंतर,
बस! निरंतर!
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